एक हप्ते से 108 एम्बुलेंस को संपर्क ना होने पर उन्होंने 10,000 रूपये देकर टैक्सी बुक कर पीड़ित महिला को उपचार के लिए अस्पताल ले गए।
पीड़ित महिला को लाते हुए |
उत्तराखंड न्यूज वाणी ब्यूरो
कपकोट। उत्तराखण्ड बने तो करीब 23 साल होने को है। अभी भी उत्तराखंड के पहाड़ों की पीड़ा का कोई भी सामाधान नही हो पाया है। आज हम बात कर रहे हैं बागेश्वर जनपद के अंतर्गत आने वाला तहसील क्षेत्र कपकोट का एक गांव बोर बलड़ा जो की तहसील मुख्यालय से करीब 40 से 45 किलोमीटर दूर है। जहाँ अभी भी संचार सुविधा, यातायात, स्वास्थ्य, शिक्षा का कोई भी तरह से ग्रामीणों के लिए सुविधा उपलब्ध नहीं है। आज एक बूढ़ी महिला मरीज को कुर्सी (डोली) में कन्धों के सहारे से करीब 25 किलोमीटर दूर पैदल चलकर रोड तक ले आये। जिस महिला की हालत गंभीर रूप से खराब थी।
पीड़ित महिला |
पीड़ित महिला के बेटे विनोद दानू से हमारी टीम ने बात की उन्होंने ने बताया कि महिला मोतिमा देवी बोर बलड़ा निवासी है। जिनकी तबियत करीब 1 हप्ते से ख़राब चल रही थी। एक हप्ते से 108 एम्बुलेंस को संपर्क ना होने पर उन्होंने 10,000 रूपये देकर टैक्सी बुक कर पीड़ित महिला को उपचार के लिए हल्द्वानी ले गए। जिसका उपचार सांई हॉस्पिटल हल्द्वानी में चल रहा है। आज करीब 12 दिन हो गए हैं महिला के उपचार चलते। डॉक्टरों ने पीड़ित महिला को गुर्दे की बीमारी बताई है जिसका ऑपरेशन किया जाना है। अभी महिला को दर्द की दवाई दी है। रिपोर्ट आने के बाद ऑपरेशन किया जायेगा। इसी तरह से कई लोगों का समय पर इलाज न होने से अपनी जान गवां बैठते हैं। इस तरह की स्थिति देखते हुए याद आता है बड़े शहर जहाँ हर तरह की सुविधा उपलब्ध है।
स्थानीय लोगों की पीड़ा में कहे जाने वाले शब्द आप भी पढ़ें, क्या कहते हैं ?
विनोद दानू पीड़ित के बेटे |
एक ओर जहाँ भारत देश विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है , सरकार देश के विश्व गुरु बनने की बात करती है, देश के बड़े शहरों में 5G सर्विस चालू हो गई है , शहरों की सड़कें शायद अमेरिका से भी अच्छी हो गई हैं, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बड़े बड़े अस्पताल भी हें जहाँ विदेशों से लोग इलाज के लिए भारत आते हैं । ये देश के लिए गर्व की बात है और एक भारतीय होने के नाते हर किसी को होना भी चाहिए । इसके साथ ही देश का एक दूसरा पहलू भी है जिस पर सरकार का ध्यान कभी नहीं जाता है । या जाता भी है तो चुनाव के समय वादों तक ही सीमित रह जाता है । भारत के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में कई गाँव ऐसे भी हैं जहाँ लोग इस नये भारत से बिलकुल ही कटे हुए हैं । इन्ही में से एक गाँव है समदर , जोकि ग्राम सभा बोरबलडा के अन्तर्गत आता है, जिसका जिक्र हम ऊपर फिये गये लाइनों में किया है।
बागेश्वर ज़िले का आँखरी गाँव है । नये भारत में क्या हो रहा है, वो इससे पूरी तरह से अनजान हें । क्यूँकि वहाँ न तो बात करने के लिये नेटवर्क है , ना आने जाने के लिए सड़कें , दूर-दूर तक कोई छोटा अस्पताल भी नहीं है, पढ़ने के लिए विद्यालय भी नहीं, और फिर उससे आगे की पढ़ाई के लिए कॉलेज तो बहुत दूर की बात है। ये वीडियो (जिसमें कि समदर से एक महिला को चार लोग कुर्सी में मैं बाँधकर अस्पताल ले जा रहे हें ) देख कर सही में हृदय बहुत आहत है कि देश में इस तरह की असमानता है तो क्या फ़ायदा हमारी ऐसी अर्थव्यवस्था का । गाँव से शिक्षा सुविधाओं के अभाव में बच्चे आगे नहीं पढ़ पाते , स्वास्थ्य, संचार और सड़कों के अभाव में हर साल किसी ना किसी की असामयिक की मृत्यु हो जाती है । सरकार को चाहिए कि देश के हर नागरिक को बराबरी का अधिकार मिले फिर चाहे वो शिक्षा का हो , स्वास्थ्य का हो या फिर और कुछ । इसमें दोष किसका है ? जिन्होंने इस जगह जन्म लिया उनका या फिर उस सरकार का जो आज़ादी के 75 साल बाद भी यहाँ के लोगों को अभी तक बुनियादी सुविधाएँ नहीं दे पायी ।
यह वीडियो में देखें कैसे ले के आ रहे पीड़ित महिला को :-